बात 30 अक्टूबर 1990 की है। अयोध्या मे मंदिर आंदोलन दो सगे कोठारी बन्धु बाबरी ढांचे पर झंडा लहराते हुए गोली लगने से शहीद हो गए थे। उनकी शव यात्रा को कंधा देने वालों में मैं भी शामिल था। 28 अक्टूबर को कठिन मार्गों से होते हुए रात दिन कभी पैदल, तो कभी टेम्पो की रात्रि को गोसाईं गंज में ठहर अगली सुबह अयोध्या मे पैदल पहुंचे थे।
The untold story of the war of non-war Ayodhya
The story is of 30 October 1990. The temple movement in Ayodhya was martyred after two kothari brothers were waving a flag on the Babri structure. I was also among those who supported his funeral. On October 28, through difficult routes, sometimes on day and night, sometimes on the night of tempo, stayed in Gosain Ganj and reached Ayodhya on the following morning. This statement is of senior leader Radheshyam Sharma, who is holding various responsibilities in BJP in Faridabad, Haryana.
यह बयान हरियाणा के फरीदाबाद में भाजपा में विभिन्न दायित्वों को संभाले रहे वरिष्ठ नेता राधेश्याम शर्मा का है।
राधेश्याम शर्मा की जुबानीः
आडवाणी जी की रथयात्रा को लेकर सारे देश के रामभक्तों में जबरदस्त उत्साह था।
हर कार्यकर्ता प्रभु श्री राम जी की कार सेवा में जाने को उत्सुक था।
फरीदाबाद से चार-चार कारसेवकों की टोली अलग-अलग बनाकर भेजी जा रही थी।
मेरे साथ भी चार कार्यकर्ता स्व. एसके अग्रवाल, संजय जी और एक अन्य सज्जान का नाम विस्मृत हो गया है।
हम चारों थे।
उत्तर प्रदेश में घुसते ही, हम जो बस आगे जाते मिली, उसमें ही सवार हो जाते।
बस जब अपने गंतव्य पर रुकती, तो हम जो भी टैंपो सवारी मिलती, उसी में आगे चल देते।
सारी रात चलते रहकर 29 अक्टूबर की शाम को हम अकबर पुर तक पहुंच गए।
उससे आगे हमें सवारियों की एक जीप मिली।
वह एक मुरिूलम था।
जो अपनी मर्जी से ऐसी जगह ले गया, जहां मुरिूलम कसाइयों की दुकानें थीं।
उसने अपनी जीप वहीं पर रोक दी और कसाइयों से बतियाने लगा।
जब हमने उसे आगे चलने के लिए कहा, तो वह कुछ युवकों को ले आया।
वो हम से गलत व्यवहार करने लगे।
तभी जीप में वहां की कुछ हिंदू सवारियां थीं।
जो हमारे समर्थन में बोलीं कि हम यहां के लोकल हैं, कोई गड़बड़ नहीं करने देंगे।
वो हमें वहाँं जीप से जबरदस्ती उतारना चाहते थे।
हम लोग काफी सहम गये थे।
तभी पीछे से एक पुलिस की जीप आ गई।
पुलिस जीप के ड्राईवर ने हमें अपनी जीप में बुला लिया और उसने हमें आगे जहां हिंदू बस्ती थी, वहां उतार दिया।
वहां के लोकल हिंदू लोग हमारे साथ मार्ग बताने लगे।
हम काफी थके होने के कारण वहां गोसाईं गंज के पास एक गांव शुक्लईया पुर में ठहरे।
वहां की महिलाओं ने हमे बड़े ही भगवद् भाव के साथ भोजन कराया।
कुुछ आराम करने के बाद, हम रात्रि दो-ढाई बजे फिर अयोध्या की ओर कूच कर गए।
कई घंटे के बाद हम प्रातः मंदिर तक अयोध्या पहुंच गए।
जहां बहुत जबरदस्त तनाव था।
चारों तरफ पुलिस और घरों में रुके कार सेवक थे।
पुलिस कारसेवकों को खदेड़ रही थी।
हम वहां एक मंदिर में ठहरे थे।
वहां हमें पता चला कि मंडी में अशोक सिंहल जी की सभा है।
हमें वहां पहुंचने के लिये बोला गया।
वहां जाकर हमें पता चला कि दो कार सेवकों को गोली मार दी गई है।
भारी तनाव में हम सभा से पुनः प्रवास की जगह जाने लगे, लेकिन पुलिस कुछ भी नहीं करने दे रही थी।
हम वहां किसी तरह निकल कर सरयू नदी के घाट पर पहुँच गए।
हमें पता चला कि दो मृत कार सेवकों को अंतिम संस्कार के लिये सरयू घाट लाया जा रहा है।
हम दोनों की शव यात्रा में शामिल होने पहुंच गये।
घाट पर हम लोगों ने उनका संस्कार किया।
संस्कार के बाद पुलिस हमें पकड़ कर ले गई और थाना अयोध्या कोतवाली में बंद कर दिया।
हवालात में दो साधुओं को रात्रि से पकड़ा हुआ था।
वो बहुत दुखी थे।
हमने कोतवाल से कहा कि इन दो साधुओं को छोड़कर इनकी जगह हमें डाल दो।
तब थानेदार ने हमारे कहने से उन दोनों साधुओं को छोड़ा।
उसके बाद पुलिस अनाउंसमेंट करने लगी कि जो कार सेवक वापस जाना चाहते हैं, वो सरकारी बसों से लखनऊ रेल
स्टेशन जा सकते हैं।
हम तब वापस लखनऊ स्टेशन आये।
जहां हम जबरदस्ती शताब्दी एक्सप्रेस चढ़ गए।
हमें उतारने का प्रयास किया गया, लेकिन हम जय श्री राम के नारे लगाने लगते, जब कोई उतारने आता।